शाख से टूट कर गिरा पत्ता / रविकांत अनमोल
शाख़ से टूट कर गिरा पत्ता
आँख भर आई रो पड़ा पत्ता
डाल ने झूल कर बिदाई दी
उस से जब हो गया जुदा पत्ता
पेड़ से प्यार था उसे लेकिन
ले गई तोड़ कर हवा पत्ता
शाख़ फिर कोंपलों से कहती है
वो कहानी कि एक था पत्ता
याद कर कर के शाख़ रोती है
हाय वो मेरा फूल-सा पत्ता
मुद्दतों से जो पेड़ सूखा था
उस पे निकला है इक हरा पत्ता
शाख़ पर साथ साथ हैं कुछ दिन
इक पुराना है इक नया पत्ता
मिल के मिट्टी में हो गया मिट्टी
पहले आँधी में कुछ उड़ा पत्ता
याद बचपन के दिन दिलाता है
शाख़ पर नाचता हुआ पत्ता
चार बूँदें पड़ीं जो शबनम की
कैसे देखो सँवर गया पत्ता
पैर अपने दरख़्त के छू कर
सिम्त मंज़िल की उड़ चला पत्ता
पेड़ फूले फले रहे आबाद
माँगता है यही दुआ पत्ता
नाम जिस पर लिखे थे दोनों के
तेरे इक ख़त से वो मिला पत्ता
वक़्त जिसका है वो ही टूटेगा
हो वो पीला कि हो हरा पत्ता