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सुनावौ कबि! (तुम) रचना ऐसी आज / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग बसन्त-तीन ताल)

 सुनावौ कबि! (तुम) रचना ऐसी आज।
 (जातें) होय समरपित पूरन मति-मन प्रिय-पद, सजि सुचि सुंदर साज॥
 अनिमिष निरखत रहैं नैन नित प्रियतम-मुख-विधु-रूप ललाम।
 बानी नित नव-नव उछाह सौं करती रहै गान गुन-नाम॥
 पीवत रहैं अतृप्त मधुर मुरली-धुनि-सुधा, नाम-गुन कान।
 प्रियतम-‌अंग-सुगंध मधुरतम सूँघत रहै निरंतर घ्रान॥
 प्रिय-प्रसाद-रस रसमय रसना चाखत रहै परम अबिराम।
 प्रिय के अँग-परसन कौ सुख नित त्वक लेत रहै रस-धाम॥