भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीठ कोरे पिता-2 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 28 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
शंख फूंकता रहा हमें
.--रूह का क़ातिल
अनाम
अन्यत्र से
एक स्वप्न की तरह ऐन्द्रजालिक
वह अपना रहस्य बनाये रखती है
.--मृत्यु
प्रकृति का ऋण है