भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूल जीवन को / महेश उपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 29 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जागरण यदि दे न पाओ
एक निर्झर का
नींद पर्वत की न देना —
फूल जीवन को
रूप मेरा साल का पहला दिवस
गन्ध मेरी बाँझ धरती की उमस
धूप करवट-सी बदलती है जिसे पीकर
धमनियों में वह नशीला रस
अपशकुन समझो न यायावर मुझे
ढाल लूँगा मैं —
समय अनुकूल जीवन को
नींद पर्वत को न देना —
फूल जीवन को