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मौक़ापरस्ती पंख / महेश उपाध्याय
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छितर जाएँगे सुनो !
मौक़ापरस्ती पंख काग़ज़ के
एक दिन की मेज़ पर सज के
ये अपने पाँव खड़ी घास
टीले के पास
(मौसम भर ही सही)
छोड़ेगी अपना इतिहास
भूमिका जो हो रहे हैं
भूमि को तज के
(वे) छितर जाएँगे
एक दिन की मेज़ पर सज के