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गजरा / अविनाश मिश्र

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मैं तुम्हारे अधरों की अरुणाई नहीं
तुम्हारे नाख़ूनों पर चढ़ी गुलाबी चमक नहीं
तुम्हारे पैरों में लगा महावर नहीं
नाहक ही मैं पीछे आया
तुम्हारे केश-अरण्य में गमकता
अपनी ही सुगन्ध से अनजान
मैं तुम्हारा अन्तरंग नहीं