उसके किसी प्रेमी का
चित्रों से पुता फाटक,
डॉन मैक्लीन की कविता
फिलिप स्टीवंस का नाटक,
इरविंग स्टोन का चर्चित उपन्यास,
जाक दुत्राँ, अकीरा कुरासोवा या
विंसेंट मिनेली की फ़िल्में
या कहानीकारों की उस पर भी
एक कहानी लिख ही डालने की प्यास...
मात्र नौ बरसों में हज़ारों
चित्र बनाकर, गोली खाकर मरने वाले
उस नायक की कहानी ही तो बताते हैं.
उसका काम हो या उसकी
उतारों-चढ़ावों की जीवन-लीला
या आलोचकों के ये शब्द कि
‘बाकी सब तो ठीक है,
बस उसके दिमाग़ का स्क्रू था ज़रा ढीला...’
तभी विरह वेदना में आलोड़ित होकर
एक धर्म-प्रचारक बन गया था
और उसकी कृतियों में धर्म का
‘भद्दा’ रंग बुरी तरह सन गया था.
पर रोज़-रोज़ सत्य बेचने वाले
आलोचकों से पूछना प्रासंगिक है
कि ये सत्यवादी तो नहीं बन पाये
उसने तो उनसे भी बेहतर चित्र बनाए
जिन्हें वह बचपन में बेचा करता था.
फिर कला-प्रवृत्तियों की कसौटियाँ किसने बदलीं!
क्या किसी और ने!
और ये इम्प्रेशनिज़्म या छायावाद का प्रभाव,
जीवन में आनन्द का अभाव
उलझनों की श्रृंखला...
कौन था यह एक्सप्रेशनिज़्म का जनक,
अभिव्यंजनावाद का पिता!
किसकी निगाहें निजी बगीचों
या रसूख वाली अँग्रेजी महिलाओं के भी
परे जाया करती थीं!
(ज़ाहिर है उसी की.)
तभी तो उसके कैनवस पर
किसान, उनके गाँव
खुशियों की धूप और जीवन की छाँव
अनाज, पुआल, पनचक्की
आलू खाते ग़रीब या ‘छोटे’ लोग
जो पल-पल खाते धक्के,
इसी से जनमे ‘स्टारी नाइट’ में रंगों के थक्के.
तारों ने जगाया जिस भीतर सोई आग को,
सोचकर
धन्यवाद देने का मन करता है विंसेंट वॉन गाग को.
रात, अँधेरा, प्रकृति और तारे
‘द स्ट्रीट’ बनी घर के किनारे
‘स्टारी नाइट ओवर द रोन’, ‘कैफ़े टैरेस एट नाइट’...
दुनिया के लिए जो छोटी चीज थी,
हर ऐसी चीज़ उन्हें कितनी अजीज थी!
पर उनकी धरोहरों के लिए किसे श्रेय दें
छोटों को, नाइट को, तारों को
या दिल में सुलगती वेदना की आग को!
या फिर स्वयं विंसेंट वॉन गाग को!