Last modified on 31 दिसम्बर 2007, at 15:02

नाव बांध कर / केदारनाथ अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 31 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


नाव बांध कर

चला गया है जीवन का मल्लाह;

चढ़ी नदी से

उमड़ रही है बंधी नाव की आह !


भूमि छोड़ कर

चला गया है सूरज का आलोक;

अन्धकार से उमड़ रहा है

खिन्न भूमि का शोक !