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फिर कली की ओर / दिनेश सिंह
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हम यहाँ हैं
और उलझी कहीं पीछे डोर
फूल कोई लौट जाना चाहता है
फिर, कली की ओर !
इस तरह भी कहीं होता है ?
इस तरह तो नहीं होता है
सिर्फ़ होता है वही, जो सामने है ,
पीठ पीछे कौन होता है ?
पीठ पीछे
सामने के बीच हम केवल
बहुत कमज़ोर !
फूल कोई लौट जाना चाहता है
फिर, कली की ओर !
मुश्किलों की याद आती है
यात्रा तो भूल जाती है
भूलने की बात भी तो भूलती है
भूल ही सब कुछ भुलाती है
जो भुलाए
भूल जाए ज़िन्दगी को
वही सीनाज़ोर !
फूल कोई लौट जाना चाहता है
फिर, कली की ओर !