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नाम कमाऊँगी / गिरीश पंकज
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देखो मेरे हाथ डोर है,
मैं भी पतंग उड़ाऊँगी ।
जो भी मुझसे टकराएगा,
उससे पेंच लड़ाऊँगी।
काम अनोखे करती हूँ मैं,
बस, नाम की गुड़िया हूँ ।
मम्मी-पापा मुझे चिढ़ाते ,
आफत की मैं पुड़िया हूँ।
जरा बड़ी हो जाऊँ फिर तो,
जग में नाम कामाऊँगी ।
देखो मेरे हाथ डोर है,
मैं भी पतंग उड़ाऊँगी ।।