भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
त्रासदी नेपथ्य में है / जगदीश पंकज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 18 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश पंकज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
त्रासदी नेपथ्य में है
मंच पर प्रहसन
अट्टहासों का सफल
अभिनय करें क्रन्दन
क्रुद्ध पीढ़ी ने
समय की देह
कुछ ऐसे छुई
दूर तक विश्वास की
नंगी त्वचा
झुलसी हुई
बहुत गहरे तक चुभे
संत्रास के दंशन
मुस्कराहट
औपचारिकता निभाकर
अनमनी-सी
अब दबावों से,
तनावों से
मची है सनसनी-सी
छिपाना अवसाद का
दैनिक हुआ मंचन