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जाड़े में बरसात-3 / भारत यायावर

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जाड़े में बरसात--सुहानी किसे लगे है ?

जिसकी छत से दिन में सूरज घुस आता है,

उसकी छाती पर कितने मन मूंग दले है !

वही भला-- जो पानी से गरमी पाता है ?


रात-रात भर पानी बरसा झम-झम-झम-झम

इस पानी ने शोर मचाया ऎसा जैसा

बजे नगाड़ा ज़ोर-ज़ोर से ढम-ढम-ढम-ढम

ऎसे में जीना अपना हो गीदड़ जैसा


किसी छॆद में छुपे हुए हों भूखे-प्यासे

ऊपर से पानी आकर मुँह बहुत चिढ़ाता

कितना मुश्किल जीना है--कोई क्या जाने

जाड़े में बरसात ! -- आदमी तो मर जाता !


जिनके सुख आकर सपनों में रोज़ सताते

रोज़ कष्ट पाने वाले कब जीवन पाते ?