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उभरता वर्ष / महेश उपाध्याय
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मन से स्वागत करो
उभरते वर्ष का ।
काल दे रहा दस्तक
नई उमंगों में
किश्ती छोड़ो अपनी
नई तरंगों में
यह जीवन क्या?
पढ़ा न जिसने
उपन्यास संघर्ष का ।
पौरुष से मिट
सकती है ललाट रेखा
अपने हाथों ही
लिख लो अपना लेखा
नहीं समय यह
आत्म-पतन का
अवसर है उत्कर्ष का ।