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अगुनोरी / महेश उपाध्याय
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लगी हुई है अगुनोरी<ref>अपंगों का मेला</ref>
अगुनोरी जी अगुनोरी ।
भाई-चारा है सिखलाती
स्वार्थ भावना दूर भगाती
सजी हुई है अगुनारी ।
धीरज रखना बतलाती है
मानवता को अपनाती है
खुलॊ हुई है अगुनोरी ।
जाति-पाति पर बहस न करती
जन के मन में अमृत भरती
बुला रही है अगुनोरी ।
शब्दार्थ
<references/>