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पहाड़ सो रहे हैं / कुमार मुकुल
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संध्या हो चुकी है
चांद से झड रही है धूल ... रोशनी की
और पहाड ... सो रहे हैं
सो रही है चिडिया रोशनदान में
ऐसे में बस हरसिंगार जाग रहा है
और बिछा रहा है फूल धरती पर
और सपने जग रहे हैं
छोटी लडकी की आंखों में
स्कूल पोशाक में
मार्च कर रही है वह पूरब की ओर
जिधर सो रहे हैं पहाड ... अंधियाले के
जहां अब उग रहा है भोर का तारा
जिसके पीछे पीछे
आ रही है सवारी सूर्य की
रश्मियों की रागिनी बजाती हुई ।
1994