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आत्मबोध / कन्हैयालाल नंदन

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यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!

आसमान टूटा,
उस पर टंके हुये
ख्वाबों के सलमे-सितारे
बिखरे.
देखते-देखते दूब के दलों का रंग
पीला पड़ गया
फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया.

और ,यह सब कुछ मैं ही था
यह मैं
बहुत देर बाद जान पाया.