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आओ दोस्त चलें हम / अनिल जनविजय

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महेश दर्पण के लिए

आओ दोस्त
लड़ें हम

लड़ें हम
मौसम के विरुद्ध
एक खतरनाक लड़ाई

भूरे-सफ़ेद चींटों से
खेलें वह खतरनाक खेल
जिसको जीतने के बाद
सिर्फ़ पाना ही पाना होगा
खोना कुछ भी नहीं

आओ दोस्त
चलें हम

बढ़ें हम
एक निश्चिन्त गन्तव्य की ओर
सधे हुए क़दमों से कतारबद्ध

अपने ख़ून-पसीने का
हिसाब करें उनसे
सदियों से
धमनियों में बसी
ग़ुलामी को तोड़ दें

आओ दोस्त
चलें हम

बनें हम
ख़ौफ़नाक पंजे
सफ़ेदपोशों के लिए

जिनकी साज़िश में
फँसे हम
जी रहे हैं मर्मान्तक यन्त्रणा

आओ दोस्त
चलें हम

तैयार करें
अपने लोगों को
इस सामन्ती व्यवस्था के विरुद्ध

भर दें
उनमें बारूद
उन्हें बन्दूक और गोला बना दें
एक कारगर हथियार

आओ दोस्त
चलें हम

मिलें हम
उब जाँबाज़ों की
जमात में

जो
आग के दहकते
गोले से लाल हैं
शहर-गाँव घूमती
जलती मशाल हैं

आओ दोस्त
चलें हम