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आँगन-आँगन दीप धरें / राजेन्द्र गौतम
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आँगन-आँगन दीप धरें
यह अन्धकार बुहरें
होता ही आया तम से रण
पर तम से तो हारी न किरण
जय करें वरण ये अथक चरण
भू-नभ को नाप धरें
लोक-हृदय अलोक-लोक हो
शोक-ग्रसित भव गत-शोक हो
तमस-पटल के पार नोक हो
यों शर-सन्धान करें
डूबे कलरव में नीरवता
भर दे कोमलता लता-लता
पत्ता-पत्ता हर्ष का पता--
दे, ज्योतित सुमन झरें