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कहां गाँवों का गोधन खो गया है / रविकांत अनमोल

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कहां गाँवों का गोधन खो गया है
हमारा मिस्री माखन खो गया है

दिए जो ख़ाब हमने ऊँचे-ऊँचे
उन्हीं में नन्हा बचपन खो गया है

महब्बत में समझदारी मिला दी
हमारा बावरापन खो गया है

जहां की दौलतें तो मिल गई हैं
कहीं अख़लाक़ का धन खो गया है

सुरीली बांसुरी की धुन सुनाकर
कहां राधा का मोहन खो गया है