भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सृजन का दर्द / कन्हैयालाल नंदन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:48, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण
अजब सी छटपटाहट,
घुटन,कसकन ,है असह पीङा
समझ लो
साधना की अवधि पूरी है
अरे घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना जरूरी है