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हमारे समय में प्रेम / मदन कश्यप

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चिठ्ठियाँ तो थी नहीं की जुगा कर रखते
बस कुछ एस०एम०एस० थे

बहुत दिनों तक बचे रहे
मगर एक दिन मिटना ही था मिट गए

हमारे समय में प्रेम
कोई निशानी नहीं छोड़ता

कुछ स्मृतियाँ होती है जो बहुत दिनों तक
बरछे की तरह चुभी रहती है
धीरे धीरे उनका लोहा भी गल जाता है !