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छूँछे घड़े / केदारनाथ अग्रवाल
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छूँछे घड़े
- बाट के टूटे
ऊँचे नहीं--
- पड़े हैं नीचे
कभी जिन्होंने
- पौधे सींचे
अब
- मन चीते
हाथ गहे के
- वे दिन बीते
अंक लगे के
- शीस चढ़े के
सपने रीते
(रचनाकाल : 06.03.1965)