भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उजाला / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 9 जनवरी 2008 का अवतरण
उजाला
इस ज़माने का जाला है
आदमी ने जिसे
अपने बचाव में
बुन डाला है
(रचनाकाल :06.10.1965)