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मैं हूँ कविता/ जेन्नी शबनम

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1 कण-कण में कविता सँवरती संस्कृति जीती । 2 अकथ्य भाव कविता पनपती खुलके जीती । 3 अक्सर रोती ग़ैरों का दर्द जीती, कविता -नारी । 4 अच्छी या बुरी, न करो आकलन मैं हूँ कविता । 5 ख़ुद से बात कविता का संवाद समझो बात । 6 शब्दों में जीती, अक्सर ही कविता लाचार होती । 7 कविता गूँजी, ख़बर है सुनाती शोर मचाती । 8 मन पे भारी समय की पलटी, कविता टूटी । 9 कविता देती गूँज प्रतिरोध की जन-मन में । 10 कविता देती सवालों के जवाब, मन में उठे । 11 खुद में जीती खुद से ही हारती, कविता गूँगी । 12 छाप छोड़ती, कविता जो गाती अंतर्मन में । 13 कविता रोती, पूरी कर अपेक्षा पाती उपेक्षा । 14 रोशनी देती कविता चमकती सूर्य-सी तेज़ । 15 भाव अर्जित भाषा होती सर्जित कविता-रूप । 16 अंतःकरण ज्वालामुखी उगले कविता लावा । 17 मन की पीर बस कविता जाने, शब्दों में बहे । 18 ख़ाक छानती मन में है झाँकती कविता आती । 19 शूल चुभाती नाजुक-सी कविता, क्रोधित होती । 20 आशा बँधाती जब निराशा छाती, कविता सखी । -0-