भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द हो तो दवा करे कोई / रियाज़ ख़ैराबादी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 12 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रियाज़ ख़ैराबादी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दर्द हो तो दवा करे कोई
मौत ही हो तो क्या करे कोई
बंद होता है अब दर-ए-तौबा
दर-ए-मयख़ाना वा करे कोई
क़ब्र में आ के नींद आई है
न उठाए ख़ुदा करे कोई
हश्र के दिन की रात हो कि न हो
अपना वादा वफ़ा करे कोई
न सताए किसी को कोई ‘रियाज़’
न सितम का गिला करे कोई