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वाघा सीमा पार करते हुए / प्रेमचन्द गांधी
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पता नहीं पुराणों के देवता ने
तीन डग में समूची धरती
सच में नापी थी या नहीं
लेकिन यहाँ तो सचमुच
तीन क़दम में दुनिया नपती है
पता नहीं दादाजी
किस साधन से आते-जाते थे
यह सरहद बनने से पहले
जिसे मैंने पैदल पार किया है
उनकी मौत के आधी सदी बाद
अगर दादाजी गए होंगे पैदल
तो मेरे क़दमों को ठीक वहीं पड़ने दो सरज़मीने हिन्द
जहाँ पुरखों के क़दम पड़े थे
दादा के पाँव पर पोते का पाँव
एक ख्वाबीदा हक़ीक़त में ही पड़ने दो
ऐ मेरे वतन की माटी
हक़ीक़त में ना सही
इसी तरह मिलने दो
पोते को दादा से
ऐ आर-पार जाती हवाओ
दुआ करो
आने वाली पीढि़याँ
यह सरहद वैसे ही पार करती रहें
जैसे पुरखे करते थे
बिना पासपोर्ट और वीजा के ।