Last modified on 21 दिसम्बर 2014, at 21:22

हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में / मज़हर इमाम

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 21 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मज़हर इमाम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हर्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में
हर सदा बे-सदा है तिरे शहर में

कोई ख़ुश्‍बू की झंकार सुनता नहीं
कौन सा गुल खिला है तिरे शहर में

कब धनक सो गई कब सितारे बुझे
कोई कब सोचता है तिरे शहर में

अब चनारों पे भी आग खिलने लगी
ज़ख़्म लो दे रहा है तिरे शहर में

जितने पते थे सब ही हवा दे गए
किस पे तकिया रहा है तिरे शहर में

एक दर्द-ए-जुदाई का ग़म क्या करें
किस मरज़ की दवा है तिरे शहर में

अब किसी शहर की चाह बाक़ी नहीं
दिल कुछ ऐसा दुखा है तिरे शहर में