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सरपंचन बन गई घरवारी / महेश कटारे सुगम
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सरपंचन बन गई घरवारी ।
अब ऊ की है लम्बरदारी ।
सेवा काय मुफत में करवें,
हमनें ऊसेई नईं झक मारी ।
हम नईं कैहें जब तक कैसें,
खेरौ नापैगौ पटवारी ।
मिलहै जबई हाज़िरी सुन लो,
दारू की लग है रंगदारी ।
काय बनावें राशन कारड,
तुमनें वोट हमें का डारी ।
घरै पठा दो आदौ दरिया,
जबई चलन दें आँगनवारी ।
जितै चाय तुम करौ शिकायत,
सबखौं दै रये हिस्सेदारी ।