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फूलों भरी राह मिलती कहाँ है / त्रिलोचन
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फूलों भरी राह मिलती कहाँ है
हँसते नए फूल जग की जलन भूल
क्षण इन्द्रधनु छाँह, क्षण छा रही धूल,
जिस को पड़े देखना कुछ न प्रतिकूल
ऐसी कली कोई खिलती कहाँ है ।
कुछ जान पहचान, कुछ कंठ में गान,
कुछ भावमय रूप, कुछ चित्रमय ध्यान,
होता यही आ रहा प्राण-संधान
मन की कठिन गाँठ खुलती कहाँ है ।
पावस गगन-गान, मधु भूमि का मान,
शुचि का प्रखर तेज, नव कल्प का ध्यान
तप के बिना कब गला हिम शिलाप्राण
मन की चुनी चाह फलती कहाँ है ।
(रचना-काल - 10-07-48)