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विडम्बनाओं के बारे में / अमिताभ बच्चन
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विडम्बनाओं के बारे में
मेरी बुनियादी समझ साफ़ थी
क़लम को सब पहले से पता होता
थोड़ा ख़ुद को कोसता
थोड़ा अपने जैसों को
कुछ उलाहना समाज सरकार को देता
कुछ ग़रीबों को गरियाता
थोड़ा पुलिस माफ़िया पर गरज़ता
फिर आदमी के जीने के हौसले को याद करता
फिर लोकतन्त्र में सुधार के लिए शोर मचाता
फिर दफ़्तर से बाहर निकल पान चबाता
और सहकर्मियों से कहता
इससे अधिक हम क्या कर सकते हैं
कवि को ये ढर्रा रास न आता