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व्यूह बनते है दलों के / त्रिलोचन

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व्यूह बनते हैं दलों के एक दल चुनना पड़ेगा


फिर महाभारत निकट है

लक्षणों से यह प्रकट है

शंख नीरव है रहें पर

भर चुका अब धैर्य घट है

रात दिन उद्योग चलता

पक्ष वर्धन की विकलता

पाँव सिऱ की ओर दो हैं, एक की सुनना पड़ेगा


चढ़ विमान सघोष आया

साथ अपने कोष लाया

एक पहले एक पैदल

संकुचित संतोष लाया

सुप्त तुम कब तक जगोगे

पक्ष में किस के लगोगे

एक अपहर्त्ता अपर कर्त्ता तुम्हें गुनना पड़ेगा


बरसता है एक सोना

चाहता है कुछ न खोना

स्वर्ण श्रृंखलबद्ध जग से,

अन्य रक्षक मात्र होना

एक अणुबम पर खड़ा है

अन्य जीवन से जड़ा है

सोच लो, जो बीज बोओगे तुम्हें लुनना पड़ेगा

(रचना-काल - 02-11-48)