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एक दिन / सुरेन्द्र रघुवंशी

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हम पहुँचेंगे उन जगहों पर
जो कल्पनाओं में हमें बुलाती रहीं
और हमारी विवशताएँ हमें वहाँ जाने से रोकती रहीं

हम संकल्प के आवेग में उड़ा चुके होंगे बाधाओं को
और उस सुबह तुम्हारे साथ विश्वामित्री नदी के किनारे
कितना सुखद होगा सूर्योदय का दर्शन
कितनी ताज़ा और स्फूर्ति से भरी होती है सुबह
हमारी आँखों में सुनहरी इच्छाओं को जगाती हुई
उस पहाड़ पर चढ़ना जिसका मैं कविताओं में
जिक्र किया किया करता हूँ अक्सर

कितना रोमांचक अनुभव होगा बतियाते और हाँफते हुए आकाश की और देखना
जबकि पहाड़ ने पहन रखे होंगे हरे-भरे वस्त्र
और चिड़ियाँ पेड़ों पर बैठी या उड़ते हुए
गा रही होंगी दुनिया का मौलिक शान्ति-गीत

उस पहाड़ की ऊँची चोटी पर तुम्हारे साथ खड़े होकर
मैं बार-बार दोहराऊँगा तुम्हारा यह कथन
कि कठिनाइयों से भागने से नहीं
बल्कि उनका सामना करने से ज़िन्दगी ख़ूबसूरत बनती है