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खो गई थी गूँज / त्रिलोचन

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खो गई थी गूँज तुम ने फिर जगा दी


भारती की बीन के स्वर

ले गया था काल जो हर

फिर वही लय फिर वही स्वर

फिर वही झंकार ला दी


सात स्वर लहरा दिए फिर

छा गए घन गीत के घिर

बंध टूटे काल के वे

फिर तरंग नई बहा दी


तारकों की, चाँदनी की,

फूल की, बेचैन जी की,

हास आँसू की, लहर की,

बात आँखों को सुझा दी


प्रलय प्लावन की चढ़ाई

नव उषा आ मुसकराई

जो जगा विश्वास भीगे

नयन में, वह छवि दिखा दी


(रचना-काल - 11-11-48)