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एक मधु मुसकान से / त्रिलोचन

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एक मधु मसकान से

लिख दो जगत की यह कहानी

यह नया पतझर, रहे झर

वे पुराने भाव वे स्वर

मिट रहे वे चित्र घन के

रवि गया जिन को बिरच कर

रात में जो स्वप्न देखा

पुष्ट जिस की भाव-रेखा

जा रही है रात तुम को मूर्ति है अपनी बनानी


रात में मन मन अलग थे

स्वप्न रचना में बिलग थे

ताल लय में नव उदय था

भिन्न भाषा भिन्न जग थे

अब उषा की स्निग्ध स्मृति में

एक सृति मे एक स्थिति में

एक भू पर भिन्न कृति में एक सरिता है बहानी


देश के ये बंध तोड़ो

जाति के ये बंध तोड़ो

वर्ण वर्ण खिले सुमन दल

रुचिर रुचिर सुंगध जोड़ो

रूप में हो तेज संचय

तेज में नव प्राण परिचय

सब बिराजें एक रचना में वही है पास लानी

(रचना-काल - 31-10-48)