भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूने आई लुटा दी अबोध / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:12, 6 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} तूने आई लु...)
तूने आई लुटा दी अबोध
तूने आई लुटा दी अबोध
कैसे बात बन
चलना वाले चले आ रहे
आगे आगे, पीछे पीछे
लगी और भई चले आ रहे
तेरे पग रुके पा कर विरोध
कैसे बातद तकबने
समय नील आकाश हो गया,
आगे पीछे, दाएँ बाएँ
उपर , मौन प्रकाश हो गया
तू ने करणीय समझा विरोध
कैसे बात बने
अनय देख तू विनय बन गया
ममता और समर्पण पर तू
बिना बात के और तन गया
आया नहीं तुझे सात्विक क्रोध
कैसे बात बने
(रचना-काल -22-2-62)