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आई जो हार / त्रिलोचन

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आई जो हार

गई कहाँ कहीं

मैं हूँ लाचार


धुरियाई देह

इतनी है खेह

पथ में ही पड़े

रहे, कहाँ गेह

खोजे कब मिला

कोई आधार


उषा मुसकराय

संध्या हँस जायॉ

कोई क्या पिए

कोई क्या खाय

पल छिन दिन मास

जब हो मझधार

(रचना-काल -9-2-62)