भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूँद / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:24, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र |संग्रह=भीगे डैनों वाल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बूँद-बूँद जल को
मैं तरसूँ
तू औंधावै पानी।
हरी घास पर
फूल उगाता
मेरा बखत गोद में जाता
सज-धज के जाती
कारों में
सिला बीनती
वे हारों में।
उड़ा रहा तू
छप्पन भोग
लगे हुए
मुझको सौ रोग
तेरी दुनिया चकमक धानी
मुझ पर भूँके
कुतिया कानी।
शाल-दुशाले
पशमीना है
मुझको ठिठुरन में
जीना है।
दिन भर खोदी नींव पड़ा-पड़
थक कर
रात चदरिया तानी।
2003