डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दांतों से,
छीन-गरीबों के मुहं का है, कौर दुरंगी घातों से ।
हरियाली में आग लगी है, नदी नदी है खौल उठी,
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी,
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर बाजार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे ।।