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भासावां रा फूल / कन्हैया लाल सेठिया
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सुध बुध त्याग भासा रा फूलां रो भारत
घणो सोवणो बाग।
गरणावै इण रै आभै में
सगळां री महकार,
भारत मां रै अंग अंग रा
अै फबता सिणगार,
भांत भांत रा पण जामण रो
सारीसो अनुराग !
पण आथूंणी क्यारी कानी
माळी कोनी जावै,
सदा सुरंगी राजस्थानी
बिना नीर कुमळावै,
आ बळगी तो कठै खिलैला
सागै राग-विराग ?
सुरसत मां रै नैण-कमल स्यूं
आंसू टळ टळ टळकै,
जायोड़ी री इण दुरगत पर
बीं रो हियो झबळकै,
सिंग्याहीण पुजारी सगळा
सूत्या सुध बुध त्याग !