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पद 41 से 50 / कन्हैया लाल सेठिया

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41.
दीठ बिगाड़ै दीठ नै
दीठ सुधारै दीठ,
बिरथा डंडै आंख नै
सै बीं भवूं अदीठ !

42.
जीवण स्यूं जीवण उगै
जीवण में स्यूं मौत,
धुंओं च्यानणो एकठा
जामण सागण जोत !

43.
सत री गैली सांकड़ी
मोटो मारग झूठ,
ईं में तक निज दीठ नै
बीं में पर री पूठ !

44.
खिण भर निजरी मजळ स्यूं
अळगो कदै न पंथ,
जीव कनै परमेस है
जे मन हुवै निगंथ !

45.
डांडी में जद काण है
बाट खरा बेकाम,
रूप लेवड़ो गुण बिन्यां
भीत मंडयों चितराम।

46.
सांवट पैली थारली
पर री मती उधेड़,
अणनाथ्या रूळियाड़ मन
निज री खोट निवेड़।

47.
खा ठोकर संभळ्यो जणां
निरज पड़यो पाखाण,
चेतण नै परचो दियो
भाटो बण भगवान !

48.
काचां पाकां री करै
नेठाई स्यूं जाण,
फेर बाछ तोड़ै कठैं
काळ कनैं औसाण !

49.
बजर सिला ऊपर,तळै
बवै निरमळो नीर,
आपो भांग्यां स्यूं मिलै
संजीवण री सीर !

50.
जामण पायो सुत इस्यो
दीन्ही कूख उजाळ,
पण जन फेंकी सीप नै
मोती लियो निकाळ !