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पद 71 से 80 / कन्हैया लाल सेठिया

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71.
भाटो फेंक्यों नीर में
एकर हुवै विसाद,
खमावान जळ निथरज्या
खिण में बैठे गाद !

72.
मन घबरायां के हुवै
पड़ी जकी नै साम,
पत राखी परलाद री
बड़ थम्बै में राम !

73.
मोती बायां जें उगै
तो कुण बावै मोठ ?
जड़ चेतण नै ओळखै
माटी कोनी ठोठ !

74.
सूरज रो रिपियो लियो
बगत अंट में दाब,
रात रेजगी गिण थकी
मांगै गगण हिसाब !

75.
पून एक पण ठा नहीं
किसी कूंट स्यूं चाल,
ढिगला करसी धान रा
का नाखैली काळ ?

76.
जे चावै सुख पांगरै
दुख नै सुख स्यूं पाळ,
काची काया फूल री
कांटा करै रूखाळ !

77.
पालर सांभर में पड़यो
उगटै कोरो खार,
संगत सारू फळ हुवै ष्
जूण करम रै लार !

78.
अणहूणी हूणी हुई
दिन रै आटै लार,
डंूगर बणग्या डगळिया
तिण बणग्या तळवार !

79.
मधरै फळ रा रूंखड़ा
रवै जीभ नै याद,
नीम उगासी बो जको
नहीं चिंतसी स्वाद !

80.
सोनल काया अगन री
धुंओं सांवळै गात,
रूप रंग के मन मिल्यां
कांई जात कुजात !