भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद 91 से 100 / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:46, 22 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

91.
गळ माटी में बीज जद
आपो दियो बिसार,
पग पूग्या पताळ में
सिर पूग्यो गिगनार !

92.
काया तो धूणी तपै
मन भागै आकास,
ठूंठ बाळ छाई करी
हुयो नहीं परगास !

93.
पल पल कर दिन आंथग्यो
खिण खिण ढळगी रात,
काळ कदै ना नीवड़ै
रात न बो परभात !

94.
रैण दिवस हरदम खुली
परमेसर री पोळ,
जे दरसण री चावना
थारो आडो खोल !

95.
भाजै भोळा मिरघला
कुतिया पकड़ी लार,
तीखा सींगां रो फिरै
निरथक लादयां भार !

96.
दुंद मिटयो अरजुण सुणी
कानूड़ै री बात,
मोटा ही तड़का हुवै
बड़ी जकां री रात !

97.
मिनख अणसुणी कर सकै
पण तू हैलो पाड़,
करै पडूतर बोल रो
सुणतां पाण सुन्याड़ !

98.
लरड़ा घणां सिंगायला
जबर करै मुठभेड़,
पण ल्याळी नै दीखज्या
बां में बैठी भेड !

99.
माटी करै दुभांत कद
मोटा कर दै पाळ ?
कळख लगावै कोयला
हीरा कूख उजाळ !

100.
मूंघा मोती नैण रा
नैणा में ही राख,
मती गमाई पीड़ री
हीरां तोली राख !