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पद 121 से 130 / कन्हैया लाल सेठिया

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121.
माटी रो ईसर करयो
माटी री गणगौर,
माटी स्यूं माटी धिजै
नहीं पतीजै और !

122.
कोरा पाना क्यूं भरै
लिख लिख लांबा लेख,
एक सबद दरपण हुवै
लेसी लाखां देख !

123.
गई अदेवळ घणकरा
गिट पोथा गंभीर
रयो जीभ पर राजियो
मीरां भगत कबीर !

124.
कठै चिणावट ठीक है
कठै धिकाई पोल ?
दै ठोल्यै री भींतड़ा
ज्यासी फटकै बोल !

125.
हिव में सूती काठ रै
अगन भूल अलगाव,
मिज्यां सधरमी जागसी
बीं रो जात सभाव !

126.
रै’कारो सुणतां हुवै
जका रीस स्यूं लाल,
बै सागी हंस हंस सुणै
गीता गाई गाळ !

127.
पड़ी रूळै बणराय में
के चिरमी रो मोल ?
पण आ सूंघी ही सकै
मूंघा हीरा तोल !

128.
उगै आकड़ा फोगड़ा
रिणरोही में आप,
अै बडभागी कुण सकै
आं पर थाप धिणाप ?

129.
मुगता पीसण रो घणो
जे है मन में चाव,
तो अणघण भाटा करा
सामी छाती घाव !

130.
बोका डोका तै करी
लंफ लेस्यां गिगनार,
बणा मूंज नाख्या नसो-
सोटां दियो उतार !