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पड़ गया कनक-कामिनी नदी में / केदारनाथ अग्रवाल

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पड़ गया है कनक-कामिनी नदी में

मधुर-मालिनी रोशनी का लुभावना जाल

और अब फँस गई है उसमें

सरल-गामिनी मछलियाँ

छोटी से छोटी,

बड़ी से बड़ी ।

मुक्ति की यह हर्ष-वाहिनी धारा
मृत्यु की हो गई है
अन्ध-यामिनी कारा !

क्षुब्ध है यह समय का सन्तरी

सिर पर चमकता धूमिल ध्रुबतारा !