भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिवस शरद के / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 8 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं-1 / केद...)
मुग्ध कमल की तरह
- पाँखुरी-पलकें खोले,
कन्धों पर अलियों की व्याकुल
- अलकें तोले,
तरल ताल से
दिवस शरद के पास बुलाते
- मेरे सपने में रस पीने की
- प्यास जगाते !