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बाजग्यो भलो छपनियों काळ / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी बरस्यो
मेह
फाटग्यो
धरती रो हियो,
हुगी
साव नागी
बडेरै गिगनार रै
मुंडागै
निलजी बणराय,
उजड़ग्या
बस्योड़ा आळा,
कोनी दिखै
कठई
रूखां रै हटै
पंखेरूआं री बींठ ?
फिरै हुयोड़ी
आकळ बाकळ
आखी जीवा जूण,
पसरगी
सूनै खेतां में
कंवारी बेकळू,
बणग्या मुसाण
सुरगां सारीसा गांव,
फिरै मिनखां रै
खोळियै में
सांपड़त प्रेत,
करळावै
भूखां री आंतां
चिबळै
भोळा नानड़िया
मायड़ री
सूखी छात्यां,
लेवै उबास्यां
धान री ओवर्यां,
अडीकै बळीतै नै
बापड़ी छनेड्यां,
मारै माख्यां
निरथक बैठा
चाकी’र चूला,
पड़या ऊंधै माथै
रूस्योड़ा घड़ा,
उतरग्यो
कुंआं रै मूंडै रो
पाणी
बिसूरै पणघट पर
चड़स’र लाव,
फिरै तेलिया भैरूंजी नै
सूंघता
हिड़क्योड़ा
गंडक,
डिडावै
बैसख्यां पड़्योड़ा सांसर
आवै मौत री गंद
फंफेडै
भखां नै
चीलां’र कांवळा,
खूटग्यो
धरती रो तप
सुणीजै
डाकण हूण रा पग,
करै कानाबाती
आपसरी में
जूनी यादां
बाजग्यो भलो
छपनियों काळ !