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सतवाणी (3) / कन्हैया लाल सेठिया

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21.
चिणिया आंगळ नींव पर
ओ दस खंडो मै’ल,
सूतो तू क्यूं जीवड़ा
मांय हुयोड़ो पैल ?
22.
खुली छोड मन आंख नै
रूळती फिरसी दीठ,
जड़ तू पलक किंवाड़िया
सुरत बावड़ी नीठ, ?

23.
रमै रमतिया साँस री
पण अणदीठी डोर,
रमत खिंडै जद ठा पड़ै
रमतो कोई और !

24.
सुख दुख करमां लार है
मन मन निरवाळो राख,
रसना स्यूं गुड़ लूण नै
समभावी बण चाख,

25.
घाट घाट भमतो फिर्या
रीतो घड़लो ले’र,
थाक्यो पद निज बावड़ी
चेतै आई फेर,

26.
राखी मर री म्यान में
तिसणां री तरवार,
जे कर दी नागी बड़ै
बावणियैं नै मार,

27.
खिरै जकै में ही रवै
बो है जको असेस,
किरिया हुवै विसेस पण
कारण है अविसेस,

28.
जड़ चेतण री उमर बण
हूण लागज्या लार,
काळ बापड़ो के करै
बिना उमर गिगनार,
29.
तन नै मोडो कर ठगी
तू मत निज नै जीव,
मन मोढो कर खोलसी
ढ़कियो मोड़ो पीव,

30.
संत सबद सिव नैण है
छूट दाझ दै काम,
धणख बाय रै रोग री
औखध तातो डाम,