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सतवाणी (10) / कन्हैया लाल सेठिया

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91.
बैठी बाई साच है
कीड़ी री सी चाल,
झूठ ऊंठ सा डग भरै
पूगण में के ताळ ?
 
92.
ससतर बणग्या सासतर
सबद दुंद रो बीज,
जड़ स्यूं बंधगी चेतणा
मिनख गयो भरमीज,

93.
सूरज कद आंथै उगै
भरमीज्योड़ा नैण,
इकलंग तापै गगन में
बीं री छाया रैण,

94.
मन राजा इनर्यां प्रजा
राखै धणी धिणाप
घणी सतायां बापड़्यां
देसी उŸार धाप,

95.
लफ भर बोई बीज मत
सागै एकण ठौड़,
बा भेळप के काम री
जुड़ ज्या जिण स्यूं गोड ?

96.
चिणगारी सोनै जिसी
अगन-पुरष रो बीज,
परस हुयो बाती गई
भोळै में गरभीज,

97.
सांस जठै पुगै बठै
मतै पुसब री गंध,
के हूंतो हंूती इंयां
सूळ चुभन निरबन्ध ?
98.
बंधण कंवळै फूल रो
सवै न बीं री गंध,
इंच्छ्या आ हर जीव री
रहूं सदा निरबन्ध,

99.
अणसमतो मत तेवड़ी
सामी समतो काम,
दिवळो राखी रात नै
नान्ही लौ पर थाम,

100.
अणगिण रै नेड़ो गयो
मैं गिणती रै पाण,
अंत मिलायो अणत स्यूं
गिणती रो अैसाण,