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सतवाणी (19) / कन्हैया लाल सेठिया

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181.
कच्चाई कोनी मिटी
मन कर घड़ा गुमान,
किसी ठेस केठा करै
तनैं ठीकरै मान ?

182.
झोटा लेवै नींद रा
थोड़ी ताल बिला’र,
काढयो चावै चूंटियो
दै झोटा सैजोर !

183.
चिंतण रो गैरो कुओ
लियो अळूंच कबीर,
‘सतवाणी’ स्यूं खोल दी
फेर रूझ्योड़ी सीर,

184.
निरजण रोही एकली
बैठी गई अमूंझ,
करी कमेड़ी गटर गूं
आभै पूगी गूंज,

185.
कर विवेक रो छायलो
मन रा फटक विचार,
उड़सी निरथक तूंतड़ा
रहसी दाणां लार,

186.
नहीं राम रै नांव स्यूं
कम रावण रो नांव
रामपुरा केई, नहीं
पण रावणपुर गांव,

187.
रावण रै दस सीस हा
आ कोरी गलवाद,
कुबधी रो परयाय बण
गयो लोक परवाद,

188.
पलक फरूकै पलक में
के ठा कती’क वार ?
मूंगी सांसां कुण गिणै
गिणै टका संसार,

189.
बड़वानल धधकै समद
दावानल कांतार,
रागानल सिलगै बळै
ओ आखो संसार,

190.
उगै न हीरा कांकरा
उगसी बो ही बीज,
लख माटी री पीड़ नै
ज्यासी जको पसीज,