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काळौ बळद / राजू सारसर ‘राज’

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कळै री
खटर-पटर में रिझ्यौड़ी
चकरी डण्डै चढयौड़ी जिनगानी।
बगत सूं पै’लां
झुक जावै
काम अर करजै रै
भार सूं
दबियौड़ा कांधा
जायौड़ै टाबर रो
बोझ ई नीं उंचाईजै।
घर-धण रा
नेहा भींणा सबद
चांदी रै चिलकारै आगै
मगसा पड़ ज्यावै
कठै ठै’र पावै
आज रो मिणख
काळौ बळद
खावणौं नीं
खाली खचणौं जाणैं
फगत पचणौं जाणैं।